भारत में कई विचित्र चीजें हैं, जिनकी वजह से ये चर्चा में रहती हैं। भारत में एक ऐसा ही विचित्र गांव भी है, जहां कभी शाम नहीं होती। यह गांव तेलंगाना के पेड्डापल्ली जिले में मौजूद कोडूरूपका गांव है।
यह गांव कभी निजाम शासकों के घूमने-टहलने का खास क्षेत्र माना जाता था। अब यह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है। बता दें कि इस गांव में कभी भी शाम नहीं होती है। दिन और रात को मिलाकर हुए 24 घंटों में यहां केवल सुबह, दोपहर और रात के पहर ही आते हैं।
पहाड़ियों से घिरा है पूरा गांव
यह गांव चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। इसी वजह से यहां हरियाली बहुत है और साफ आवोहवा सुकून देने वाली होती है। अपनी विशेषता के कारण यह गांव फिर से टूरिस्ट प्लेस बनता जा रहा है। यहां सूरज देर से उगता है और जल्दी छिप जाता है। इस गांव के चारों और पहाड़ है। यहां पूरब में गोला गुट्टा, पश्चिम में रंगानायकुला गुट्टा, दक्षिण में पामुबंदा गुट्टा और उत्तर में नांबुलादरी स्वामी गुट्टा पहाड़ियां मौजूद हैं। इसी वजह से सूरज के उगने और अस्त होने का समय प्रभावित होता है।
4 बजे हो जाता है अंधेरा
यहां जैसे ही सूरज उगता है तो पूर्व दिशा में स्थित गोला गुट्टा पहाड़ी उगते सूरज की दीवार बन जाता है। इस वजह से सूरज की रोशनी देर से गाँव तक पहुंचती है। अन्य स्थानों की तुलना में सूर्य की किरणें साठ मिनट की देरी से गाँव पर पड़ती हैं। वहीं रंगनायकुल गुट्टा पहाड़ी के पीछे सूरज छिपने से यहां शाम 4 बजे ही गांव में अंधेरा छा जाता है। गांव के हर घर और गली में शाम 4 बजे लाइट जल जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, गांव में असामान्य मौसम की स्थिति के पीछे प्रकाश का परावर्तन और अपवर्तन मुख्य कारण हैं।
3 बजे तक घर पहुंच जाते हैं गांव के लोग
गाँव की विशेष भौगोलिक परिस्थितियाँ ग्रामीणों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को प्रभावित करती रही हैं। लोग अपना काम जल्दी पूरा कर अपने घर पहुंच जाते हैं। कामकाजी महिलाएं भी दोपहर 3 बजे तक जल्दी अपने घर पहुंच जाती हैं। पहाड़ियों, हरियाली, एक मंदिर, और गांव के चारों ओर बहने वाली एक जल धारा- कनला वागु के साथ, कोडुरुपका गांव एक पुराना पर्यटन स्थल है। आस-पास के गांवों और कस्बों के लोग सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए गांव का दौरा कर रहे हैं।