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Bhai Dooj: क्या आप जानते हैं भाई दूज पर तिलक का सही समय?

क्या आप जानते हैं भाई दूज पर तिलक का सही समय?:

क्या आप जानते हैं भाई दूज पर तिलक का सही समय? : भाई बहन के रिश्ते को बेहद खास माना जाता है। भाई-बहन के बीच जितनी टांग-खिचाई होती है, उससे कई ज्यादा बढ़कर दोनों के बीच प्यार होता है। कभी बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा कवच बांधकर रक्षा करने का वचन लेती है तो कभी भाई के माथे पर तिलक लगाकर अपना आशीर्वाद और दुआएं देती है। इसी तरह हर साल दिवाली के पावन माहौल को स्नेह‑भरे उत्सव को समेटते हुए आता है Bhai Dooj  जो भाई‑बहन के प्रेम, सुरक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक पर्व है। इस साल भाई दूज का पावन त्यौहार 23 अक्टूबर को मनाया जा रहा है।

क्या आप जानते हैं भाई दूज पर तिलक का सही समय?

भाई दूज मनाने का शुभ मुहूर्त:

पंचांग के अनुसार, Bhai Dooj का शुभ मुहूर्त 23 अक्टूबर 2025 को दोपहर 1:13 बजे से 3:28 बजे तक है। भाई दूज का पर्व 23 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा, क्योंकि कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर 2025 को रात 8:16 बजे शुरू होकर 23 अक्टूबर को रात 10:46 बजे समाप्त होगी।

भाई को तिलक करने तथा बहन द्वारा पवित्र आशीर्वाद देने का सबसे शुभ मुहूर्त इस दिन दोपहर 1 :13 से 3 :28 बजे तक माना गया है।

शुभ मुहूर्त का महत्व

शुभ मुहूर्त का अर्थ सिर्फ सही समय नहीं, बल्कि उस समय में लगे कर्मों में विशेष शुद्धि, सकारात्मक ऊर्जा और संबंध‑भाव की पवित्रता को दर्शाता है। भाई‑बहन (Bhai Dooj) का यह मिलन, तिलक‑आरती और मंगलकामना का क्षण, जब उपयुक्त समय पर हो, तो माना जाता है कि वह औपचारिकता से परे एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है। इस वर्ष जो समय तय हुआ है — 1:13 से 3:28 बजे — वह ठीक उस अवधि में है जब दिन के प्रकाश के साथ मिलती है छायाएँ समाप्त होती हैं और संबंधों की झलक अधिक स्पष्ट होती है।

बहन जब उस समय (Bhai Dooj) अपने भाई को रोली‑अक्षत से तिलक करती है, आशीर्वाद देती है, मिठाई खिलाती है और भाई उसे उपहार देता है — यह पूरी प्रक्रिया एक तरह से जीवन‑साथ और खुशियों का प्रतीक बन जाती है। इसी कारण से शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना परंपरा में खास महत्त्व रखता है।

क्या आप जानते हैं भाई दूज पर तिलक का सही समय?

पौराणिक कथा के अनुसार क्यों मनाया जाता है भाई-दूज (Bhai Dooj) का पर्व ?

भाई दूज (Bhai Dooj) की कहानी यमराज और यमुना के पौराणिक कथा पर आधारित है। यह कथा बताती है कि यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर आकर भोजन करने का निमंत्रण दिया था। यमराज व्यस्त रहने के कारण बार-बार उन्हें टालते रहे। अंततः, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को, यमुना के प्रेम और आग्रह से प्रसन्न होकर यमराज उनके घर पहुंचे। यमुना ने भाई का बड़े स्नेह और आदर से स्वागत किया। उन्होंने यमराज को स्वादिष्ट भोजन कराया और माथे पर तिलक लगाया। यमुना के प्रेम से खुश होकर यमराज ने उनसे वरदान मांगने को कहा। यमुना ने वरदान मांगा कि वे हर साल इस दिन उनके घर आकर भोजन करें और यह भी कि जो बहनें इस दिन अपने भाई को टीका करें, उन्हें यम का भय न हो। यमराज ने “तथास्तु” कहा और तभी से भाई दूज मनाने की परंपरा शुरू हुई, जिसके अनुसार भाई-बहन इस दिन एक-दूसरे से मिलते हैं, बहनें भाइयों को तिलक लगाती हैं और भाई उनकी रक्षा का वचन देते हैं।

परंपरा व विधि

भाई‑दूज (Bhai Dooj) सिर्फ भाई‑बहन के बीच महज एक रस्म नहीं, ये रिश्तों के महत्व का त्यौहर है जो परिवार-बंधन और सहयोग की भावना को दर्शाता है। शब्दों में बातें तो बड़ी सरल सी लगती है जैसे भाई वचन देते हैं कि मैं तेरा साथ दूंगा और वहीं बहन जो कामना करती है कि भाई, तू हमेशा सुखी रहो, ये बात है तो बेहद सरल किंतु बेहद गहरी है। उसी तरह, आज‑कल के व्यस्त जीवन में यह क्षण हमें सचेत करता है कि भले ही दूर हो जाएँ, दिल और भावना में रिश्ता जिंदा रह सकता है। यही त्योहार हमें याद दिलाता है कि जीवन के पथ पर साथ‑सहारा, उत्साह और निस्वार्थ प्रेम सबसे बड़ी पूंजी है।

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