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निठारी कांड जिसने देश को हिला दिया था…..सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया पूरा खेल

निठारी कांड जिसने देश को हिला दिया था…..सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया पूरा खेल

साल 2006 में, नोएडा के निठारी गांव से सामने आए सीरियल किलिंग (Nithari Serial Killings) मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। यह मामला न केवल अपराध की भयावहता के लिए, बल्कि जांच और कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं के लिए भी भारतीय न्यायिक इतिहास में एक काला अध्याय बन गया। अब, लगभग दो दशक बाद, इस मामले में एक बड़ा मोड़ आया है।

11 नवंबर 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के मुख्य दोषी सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है और उसकी दोषसिद्धि को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि अगर वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तत्काल रिहा किया जाए। यह फैसला निठारी कांड के पूरे खेल को बदल देने वाला साबित हुआ है।

क्या था निठारी हत्याकांड?

निठारी कांड जिसने देश को हिला दिया था…..सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया पूरा खेल, निठारी कांड 2005 और 2006 के बीच हुआ था, जब नोएडा के निठारी गांव में कई बच्चे और एक युवा महिला रहस्यमय तरीके से लापता हो गए थे। दिसंबर 2006 में, एक घर के पास नाले से मानव कंकाल और अवशेष मिलने के बाद इस भयावह मामले का खुलासा हुआ।

यह घर व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढेर का था, और सुरेंद्र कोली उसका घरेलू नौकर था। जांच में पता चला कि कोली ने कई पीड़ितों की हत्या, बलात्कार और उनके शरीर के अंगों को खाया था। इस मामले ने देश की कानून व्यवस्था और पुलिस जांच पर गंभीर सवाल खड़े किए थे।

सुप्रीम कोर्ट का चौंकाने वाला फैसला

निठारी कांड जिसने देश को हिला दिया था…..सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया पूरा खेल, सुरेंद्र कोली को निचली अदालतों और इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा कई मामलों में मौत की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बाद में उसके खिलाफ शेष 12 मामलों में उसे बरी कर दिया था। इसके बाद, कोली ने अपने अंतिम मामले में दोषसिद्धि के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में एक सुधारात्मक याचिका (Curative Petition) दायर की।

निठारी कांड जिसने देश को हिला दिया था…..सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया पूरा खेल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि:

•सबूतों का अभाव: कोली की दोषसिद्धि केवल एक बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी के आधार पर हुई थी।

•असामान्य स्थिति: बाकी मामलों में बरी किए जाने के कारण यह स्थिति असामान्य हो गई थी।

•न्याय का सिद्धांत: कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अभियोजन पक्ष (Prosecution) संदेह से परे अपना मामला साबित करने में विफल रहा।

न्यायमूर्ति नाथ ने फैसला सुनाते हुए कहा, “याचिकाकर्ता को आरोपों से बरी किया जाता है। याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा किया जाए।”

फैसले का प्रभाव और कानूनी बहस

निठारी कांड जिसने देश को हिला दिया था…..सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया पूरा खेल, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ता है। यह दिखाता है कि भले ही कोई मामला कितना भी जघन्य और सनसनीखेज क्यों न हो, न्यायपालिका हमेशा ‘संदेह का लाभ’ (Benefit of Doubt) और उचित कानूनी प्रक्रिया के सिद्धांतों का पालन करती है।

इस फैसले के बाद, यह सवाल फिर से उठ खड़ा हुआ है कि क्या पुलिस जांच में खामियां थीं, जिसके कारण इतने जघन्य अपराध के आरोपी को बरी करना पड़ा। यह फैसला इस बात को भी रेखांकित करता है कि किसी भी मामले में, खासकर जहां मौत की सजा शामिल हो, सबूतों की श्रृंखला (Chain of Evidence) मजबूत और निर्विवाद होनी चाहिए।

निठारी कांड: एक सामाजिक घाव

निठारी कांड जिसने देश को हिला दिया था…..सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल गया पूरा खेल, निठारी कांड केवल एक कानूनी मामला नहीं था, बल्कि यह समाज के लिए एक गहरा घाव था। इसने गरीब और हाशिए पर रहने वाले परिवारों के बच्चों की सुरक्षा पर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने पीड़ितों के परिवारों के लिए एक बार फिर से दर्द और निराशा का माहौल पैदा कर दिया है।

यह मामला हमेशा इस बात की याद दिलाता रहेगा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में जांच, अभियोजन और न्यायिक प्रक्रिया कितनी महत्वपूर्ण और संवेदनशील होती है। सुरेंद्र कोली की रिहाई के आदेश के साथ, निठारी कांड का कानूनी अध्याय एक अप्रत्याशित मोड़ पर समाप्त हुआ है, लेकिन इसके सामाजिक और नैतिक सवाल आज भी बरकरार हैं।

निठारी कांड: मुख्य घटनाक्रम
घटना का समय2005-2006
स्थाननिठारी गांव, नोएडा
मुख्य आरोपीसुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर
मामले का खुलासादिसंबर 2006 में नाले से मानव अवशेष मिलने पर
सुप्रीम कोर्ट का फैसला11 नवंबर 2025
फैसले का सारसुरेंद्र कोली को बरी किया गया, दोषसिद्धि रद्द
फैसले का आधारसबूतों की कमी और कानूनी प्रक्रिया में खामियां

यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली की जटिलताओं को दर्शाता है, जहां न्याय की अंतिम कसौटी केवल अपराध की भयावहता नहीं, बल्कि कानूनी रूप से सिद्ध किए गए साक्ष्य होते हैं।

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