Glory of Ganga water: वैज्ञानिकों ने पाया कि इसमें बैक्टीरियोफेज और निंजा वायरस होते हैं जो बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं! इसीलिए गंगा को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है! गंगाजल की विशेषता है कि यह सालों-साल खराब नहीं होता और इसमें बदबू नहीं आती!
- आप जानते हैं कि क्यों गंगाजल सालों-साल खराब नहीं होता है
- बैक्टीरियोफेज और निंजा वायरस की वजह से गंगाजल शुद्ध रहता है
- अन्य नदियों के मुकाबले गंगाजल में ऑक्सीजन की अधिक मात्रा होती है
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गंगा को भारत की सबसे लंबी नदी का भी दर्जा प्राप्त है! उत्तराखंड के गोमुख से निकली गंगा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल होते हुए बांग्लादेश में बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलने तक 2,525 किलोमीटर तक का सफर तय करती है! यह माना जाता है कि गंगाजल में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है! गंगाजल को अमृत के समान माना जाता है! यह मान्यता है कि गंगाजल का सेवन करने से शरीर निरोगी रहता है और दीर्घायु प्राप्त होती है1 पूजा-पाठ से लेकर हवन अनुष्ठान जैसे तमाम धार्मिक कार्यों में गंगाजल का इस्तेमाल होता है!
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भले ही पिछले दिनों प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में नदियों के पानी को प्रदूषित करार दिया गया हो, लेकिन हकीकत यह है कि गंगा को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है! इसीलिए गंगा का पानी गंगाजल कहलाता है! गंगाजल की एक अद्भुत विशेषता है यह सालों-साल खराब नहीं होता और न ही इसमें से कभी बदबू आती है! इसके पीछे कई वैज्ञानिक और धार्मिक कारण बताए जाते हैं! भारत में खासतौर से हिंदू धर्म में गंगा नदी को मां कहा जाता है! महाभारत से लेकर तमाम पौराणिक ग्रंथों में गंगा का जिक्र मिलता है!
Glory of Ganga water: गंगाजल के चमत्कार
गंगाजल कभी खराब क्यों नहीं होता और क्यों इसमें कीड़े नहीं पड़ते हैं? यह पता लगाने की शुरुआत लगभग 135 साल पहले हुई थी! साल 1890 के आसपास भारत के तमाम इलाकों में अकाल पड़ा था! जिसकी वजह से भुखमरी के हालात पैदा हो गए! अकाल के कारण मौतें तो हो ही रही थीं! इस दौरान इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में संगम तट पर लगने वाले माघ मेले में हैजा भी फैल गया! जिसकी वजह से धड़ाधड़ मौतें होने लगीं! लोगों के पास लाशों को जलाने और दफनाने के साधन मौजूद नहीं थे! ज्यादातर लोग लाशों को गंगा में बहाने लगे!
Glory of Ganga water: ब्रिटिश वैज्ञानिक के अनुसार
ब्रिटेन के एक जानेमाने वैज्ञानिक और बैक्टीरियोलॉजिस्ट अर्नेस्ट हैन्किन गंगाजल पर शोध कर रहे थे! वह यह देखकर दंग रह गए कि हैजे से मरने वाले लोगों की लाश बहाने के बावजूद गंगा नदी का जल इस्तेमाल करने वाले दूसरे लोगों को कोई नुकसान नहीं हो रहा है! जबकि ब्रिटेन या अन्य यूरोपीय देशों में इसके विपरीत था! वहां, दूषित नदी का पानी इस्तेमाल करने से लोग बीमार पड़ जाते थे! अर्नेस्ट हैन्किन ने गंगाजल के सैंपल इकट्ठा किए और उनका विश्लेषण किया! उन्होंने पाया कि गंगाजल में बहुत कम बैक्टीरियल प्रदूषण था, जबकि इस नदी में आदमी से लेकर मवेशी तक नहाते, कचरा फेंकते और इसके तटों पर शव जलाते थे! साल 1895 में अर्नेस्ट हैन्किन ने एक पेपर में लिखा, ‘भारत की गंगा और यमुना नदी ब्रिटेन या यूरोप की ज्यादातर नदियों की तुलना में साफ हैं! भले ही इनके साथ कैसा भी व्यवहार किया जाता हो!
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Glory of Ganga water: विश्लेषण
मार्च 1895 के इंडियन मेडिकल गजट में, अर्नेस्ट हैन्किन ने एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था, ‘ऑब्जर्वेशनऑन कॉलरा इन इंडिया.’ उन्होंने बताया कि गंगाजल में एक ऐसा पदार्थ पाया जो हैजा के बैक्टीरिया को खत्म कर सकता है! अर्नेस्ट हैन्किन ने निष्कर्ष निकाला कि नदी में फेंकी गई गंदगी और कचरा ज्यादातर कछुए और गिद्ध या दूसरे जानवर खा जाते थे, लेकिन जो जैविक सड़न थी, उसे यही अज्ञात ‘एंटी-बैक्टीरियल’ पदार्थ जल्दी से साफ कर देता था!
Glory of Ganga water: ऑक्सीजन की अधिक मात्रा
गंगाजल की एक और खासियत ये है कि इसमें वायुमंडल से ऑक्सीजन सोखने की क्षमता काफी ज्यादा है! दूसरी नदियों की तुलना में गंगा 20 गुना गंदगी अवशोषित कर सकती है! गंगाजल में ऑक्सीजन की अधिक मात्रा भी पानी को सड़ने से बचाती है! गंगा नदी हिमालय से निकलती है और अपने रास्ते में कई प्रकार की जड़ी-बूटियों और खनिजों से होकर गुजरती है! इन खनिजों के कारण गंगाजल में प्राकृतिक रूप से शुद्धिकरण की क्षमता होती है! गंगाजल की शुद्धता और उसके खराब न होने के पीछे वैज्ञानिक कारण महत्वपूर्ण हैं! इसीलिए गंगाजल न केवल हमारी धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभदायक है!
Glory of Ganga water: शुद्धता की वजह
गंगाजल में करीब 1000 तरह के ‘बैक्टीरियोफेज’ पाए जाते हैं! ये बैक्टीरिया को नष्ट करने वाले वायरस हैं! साइंस फैक्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक दूसरी नदियों में भी बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं, लेकिन इनकी संख्या कम होती है! जैसे यमुना या नर्मदा नदी में 200 से कम प्रकार के ही बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं! यही कारण है कि दूसरी नदियों के जल के मुकाबले गंगाजल आसानी से खराब नहीं होता है! वहीं गंगाजल में सल्फर की मात्रा भी अधिक होती है, जो इसे लंबे समय तक खराब नहीं होने देती है!
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