These items were originally made for the army: सेना के ल‍िए बनाई गई थी ये चीजें, अब धड़ल्‍ले से हर घर में हो रहीं इस्‍तेमाल, क्‍या आपको पता है इनके बारे में?

These items were originally made for the army
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These items were originally made for the army: साइंस इनोवेशन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट किसी भी देश ताकत होती हैं. जो जितना पैसा और दिमाग खर्च करता है उसकी ताकत में उतना ही इजाफा होता है. ये आज से नहीं, सदियों से होता रहा है. खास बात तो ये है कि ज्यादातर आविष्कार जो कि सेना के लिए किए गए, वो सेना में तो इस्तेमाल हो ही रहे हैं लेकिन उनके सिविल इस्तेमाल ने तो दुनिया ही बदल दी. खास बात ये है कि आज इन आविष्कारों का इस्‍तेमाल हर घर में हो रहा है. लेकिन बहुत सारे लोगों को इसके बारे में पता नहीं.

1- These items were originally made for the army : इंटरनेट

बिना इंटरनेट के आज कुछ भी सोचना संभव ही नहीं. तकनीक की दुनिया में यह आविष्कार मील का पत्‍थर साबित हुआ है. आपको ये तो पता होगा क‍ि इंटरनेट का आविष्कार कब हुआ, लेकिन क्‍या आप जानते हैं क‍ि इसका आव‍िष्‍कार किसके लिए किया गया? बहुत सारे लोगों को इसके बारे में पता नहीं होगा. तो बता दें क‍ि 1969 में यूएस डिफेंस डिपार्टमेंट के एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी नेटवर्क यानी की ARPANET ने इसका इजाद क‍िया था. तब इसका मकसद था पूरे अमेरिका में यूनिवर्सिटी, सरकारी एजेंसी और डिफेंस कांट्रैक्‍टर को एक लिंक के साथ जोड़ना. लेकिन अब हर कोई इसका इस्‍तेमाल कर रहा है.

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2- GPS यानी ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम 

आज के दौर में बिना GPS घर से निकलने की कोई सोच भी नहीं सकता. रूट से लेकर ट्रैफ‍िक तक इससे फॉलो किया जाता है तो हर एयरक्राफ्ट , पानी के जहाज और चीन को छोड़कर दुनिया का हर शख्‍स इस GPS का इस्तेमाल करता है. 1970 में अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस ने GPS सेटअप किया था. इसके लिए 1978 अमेरिका ने नेविगेशन सिस्टम विद टाइमिंग एंड रेजिंग (NAVSTAR) में पहला सैटेलाइट लॉन्‍च किया गया था. यह सिस्टम 1993 में चालू हुआ, जिसमें कुल 24 सैटेलाइट 19300 किलोमीटर ऊपर ऑर्बिट में चक्कर लगा रहे थे . पहले NAVSTAR अमेरिकी सेना और उनके कुछ सहयोगियों तक ही सीमित थी. लेकिन 1983 में इसे सबके इस्तेमाल के लिए फ्री कर दिया गया.

3- माइक्रो वेव ओवन

जब वैज्ञानिक के जेब में रखी चॉकलेट को माइक्रोवेव ने पिघला दिया तब पहली बार माइक्रोवेव अस्तित्व में आया. कहानी बड़ी रोचक है और इसकी शुरुआत दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शीत युद्ध के दौरान हुई. उस वक्त रडार की तकनीक में जबरदस्त तेजी आई. शीत युद्ध के दौरान नाटो की फोर्स के रडार इंस्टालेशन सोवियत संघ के फाइटर और मिसाइल के खतरे को देखते हुए लगातार आसमान को स्कैन किया करते थे. 1946 पर्सी स्पेंसर नाम के एक वैज्ञानिक ने मैग्नेट्रॉन यानी की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव पर शोध कर रहे थे ताक‍ि रडार के पावर को बढ़ाया जा सका, तब माइक्रोवेव का पहली बार पता चला. उस वक्‍त वैज्ञानिक के जेब में रखी चॉकलेट पिघल गई. उसके बाद उत्सुकता बढ़ी तो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव का इस्तेमाल कच्चे अंडे पर किया गया जो क‍ि फट गया. उसके बाद मक्की के दाने को पहली बार माइक्रोवेव ने पॉपकॉर्न में बदल दिया. एक साल बाद 1947 में पहली माइक्रोवेव ओवन बाज़ार  में आया.

4- एविएटर सनग्लासेस ( रे बैन )

सेना के अफसरों को एविएटर सनग्लासेस में आपने अक्‍सर देखा होगा. लेकिन अब तो हर कोई इसका इस्‍तेमाल करता है. मगर क्या आपको पता है क‍ि पहली बार ये सन ग्लास एविएटर पायलटों के लिए 1930 के दशक में डेवलप किए गए. एविएटर विकास के शुरुआती समय में विमानों के कॉकपिट में बंद नहीं होते थे, उस वक्त तेज हवा और ठंड से बचाने के लिए फर वाले भारी चश्मे पायलट पहनते थे. लेकिन जैसे ही विमानों की रफ्तार बढ़ी तो कॉकपिट कांच से ढक दिए गए. इसके बाद ठंड की जगह जरूरत पड़ी सूरज की रोशनी से आंखों को बचाने की. यूएस आर्मी के एयर कोर के कर्नल जॉन मैकरेडी ने इस सन ग्लास को विकसित करने के लिए न्यूयॉर्क के मेडिकल उपकरण निर्माता के साथ काम किया. जब पहला एवियेटर सन ग्लास प्रोटोटाइप 1936  बना तो उसका नाम दिया गया एंटी ग्लेयर जो कि प्लास्टिक के फ्रेम में हरे रंग के लेंस था . अल्ट्रावायलेट रे को रोकने की क्षमता के चलते इसका नाम पड़ा. बाद में इसे रेबैन नाम द‍िया गया.

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