
नई दिल्ली. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने 1 अप्रैल 2017 से पहले के गठित सभी किसान क्लबों को तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया है. उन्होंने कहा है कि पिछले तीन साल में जिन क्लबों के चुनाव होकर उनका पुर्नगठन हुआ है वही मान्य होंगे. वर्षों से बिना काम के चल रहे किसान क्लब बंद होंगे. खट्टर ने यह आदेश गुरुग्राम में आयोजित कष्ट निवारण समिति की बैठक में लोगों की शिकायतों पर सुनवाई करते हुए दिया.
सीएम ने कहा कि किसानों की खुशहाली के लिए किसान क्लब का गठन किया गया है. इसलिए इनका पुर्नगठन निर्धारित समय में होना चाहिए. उन्होंने यह भी आदेश दिया कि नगर निगम क्षेत्र में स्थित डेयरी से निकलने वाले गोबर को दिन में दो बार उठाया जाना सुनिश्चित किया जाए. कृषि विभाग की ओर से चलाई जाने वाली योजनाओं को जानकारी किसान क्लबों के जरिए सीधे किसानों तक पहुंचती हैं.
किसान क्लबों का क्या काम?
आखिर किसान क्लबों का काम क्या है? प्रगतिशील किसान मंच के अध्यक्ष सत्यवीर डागर ने इसके बारे में जानकारी दी. डागर ने बताया कि हरियाणा में सबसे पहले साल 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने जिला स्तर पर किसान क्लब बनवाए थे. इसका चेयरमैन जिला उपायुक्त होता था. हर महीने क्लब के सदस्यों की खेती-किसानी से संबंधित विभागों के अधिकारियों के साथ मीटिंग होती थी. इसमें आसानी से किसानों की समस्याओं का समाधान हो जाता था.
बाद में कुछ प्रगतिशील किसानों ने मिलकर ब्लॉक और गांव स्तर पर भी क्लब बनाए और आम किसानों तक कृषि से संबंधित योजनाओं का लाभ पहुंचवाने का काम किया. क्लब का बाकायदा रजिस्ट्रार के यहां रजिट्रेशन होता है. इसके जरिए जितनी भी सरकार की पॉलिसी है उसका लाभ लेने में आसानी हो जाती है. बीज और खाद मिलने में दिक्कत नहीं होती. ग्रुप रहता है तो प्रेशर रहता है.
सीएम ने तो क्लब भंग कर दिए. अब अधिकारी गलत करेंगे तो किसानों की आवाज कौन उठाएगा. क्लबों को भंग करना किसानों के प्रति बीजेपी सरकार की मानसिकता दिखाती है. सरकार किसान क्लबों को पैसा तो दे नहीं रही. फिर उन्हें भंग करके अव्यवस्था क्यों फैला रही है. जहां तक अधिकारियों की बात है तो बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से जो सरसों, आलू और सब्जियों को नुकसान पहुंचा है उसका आकलन करने के लिए ज्यादातर गांवों में अब तक सरकार की टीम भी नहीं गई है. ऐसे कैसे किसानों का फायदा होगा.