
नई दिल्ली- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान 10 सितंबर को बड़ा आदेश दिया है. हाईकोर्ट के अनुसार अगर कोई जन प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार या विश्वास वाला काम करने में असमर्थ है तो उसे पावर में रहने का अधिकार एक सेकंड के लिए भी नहीं है. हाईकोर्ट के अनुसार लोकतंत्र सरकार का वह हिस्सा है, जिसमें देश के राजनेता जनता द्वारा निष्पक्ष रूप से चुनाव में चुने जाते हैं. लोकतंत्र में जनता के पास सत्ता में लाने के लिए उम्मीदवारों और दलों का विकल्प होता है. जनता सम्राट होती है. जनता ही सबसे बड़ी अथॉरिटी होती है और सरकार लोगों की इच्छाशक्ति पर आधारित होती है.
livelaw.in के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगे कहा, ‘स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों को लोगों की आवाज जरूर सुननी चाहिए. साथ ही उनकी जरूरत पूरी करने का भी काम करना चाहिए. ऐसे में जनता जब अपने प्रतिनिधि को चुनती है तो उसकी आलोचना भी कर सकती है और अगर वे ठीक से काम न करें तो उन्हें हटा भी सकती है.’
यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शशिकांत गुप्ता और पीयूष अग्रवाल की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान की. यह मामला बिजनौर के कोतवाली क्षेत्र पंचायत के प्रमुख से जुड़ा हुआ है. पंचायत प्रमुख ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. दरअसल याचिकाकर्ता पंचायत प्रमुख ने 29 जुलाई 2019 को कार्यभार संभाला था. 21 अगस्त 2020 को उनके खिलाफ अविश्वास मत लाया गया. यह उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत औरजिला पंचायत एक्ट 1961 के सेक्शन 15 के अंतर्गत था.
इस अविश्वास मत को देखते हुए बिजनौर के जिला मजिस्ट्रेट ने 21 अगस्त 2020 को एक नोटिस जारी कर अविश्वास मत के संबंध में विचार के लिए 15 सितंबर 2020 को सुबह 11 बजे मीटिंग बुलाई है. याचिकाकर्ता ने कोरोना वायरस संक्रमण के बीच लागू हुए अनलॉक 4 की गाइडलाइंस का हवाला देते हुए मीटिंग का विरोध किया. क्योंकि इसमें करीब 185 सदस्य हिस्सा ले सकते हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए इस बात पर जोर दिया कि 1961 के एक्ट तहत स्थानीय स्वायत्त शासन, जहां गांव की सभाओं को लोकतांत्रिक रूप से अपने मामलों के निपटारे और सरकारी कामकाम का अधिकार दिया गया है. इसी के तहत उन्हें प्रधान को चुनने और अविश्वास मत के जरिये उसे हटाने का भी अधिकार मिला हुआ है.