फुटबॉल ने बदल दी भारत के इस गांव की तकदीर! हर घर में बरसा पैसा, जानिए कैसे

नई दिल्‍ली. उत्‍तर प्रदेश के मेरठ जिले में एक गांव है सिसोला बुजुर्ग. इस गांव से फुटबॉल का कोई स्टार नहीं निकला, फिर भी इस गांव की तकदीर बदलने में फुटबॉल ने अहम भूमिका निभाई है. भले ही यहां कोई फुटबॉल खेलना न जानता हो, परंतु फुटबॉल बनाने में यहां का हर बाशिंदा माहिर है. 3,000 परिवार वाले इस गांव में हर घर में फुटबॉल बनाई जाता है और यहां बेरोजगारी का नामोनिशान भी नहीं है. फुटबॉल बनाने के कारण ही यहां का कोई व्‍यक्ति रोजगार के लिए कहीं और नहीं जाता.

यहां 40 साल से भी अधिक समय से लोग फुटबॉल बना रहे हैं. शुरुआती दौर में 4-5 लोगों ने शौकिया तौर पर यह काम करते थे. धीरे-धीरे उनका यह शौक रोजगार में बदल गया. उन्हें ऑर्डर मिलने लगे. बाजार मिलने लगे. फिर फुटबॉल बनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अभी तक बदस्तूर जारी है.

हर साल बनते हैं 11 लाख फुटबॉल

सिसोला बुजुर्ग गांव में हर साल 11 लाख से ज्यादा फुटबॉल बनाए जाते हैं. गांव की एक महिला ने बताया कि 20 साल से अधिक समय से ये फुटबॉल बना रही है. चमड़ा सिलने और काटने में माहिर एक छात्रा ने बताया कि यह काम नकदी फसल की तरह है. इसमें तुरंत पैसा मिलता है और खेती से ज्‍यादा आमदनी होती है. इससे हमें अपनी पढ़ाई में मदद मिलती है. गांव के बहुत से छात्र-छात्राएं फुटबॉल सिलकर अपनी फीस भी भर रहे हैं. यही कारण है कि गांव के लोगों ने अन्‍य कामों की बजाय फुटबॉल बनाने को ही अपना मुख्‍य कार्य बना लिया है.

करोड़ों का कारोबार

यहां हर दिन औसतन 3,000 से ज्यादा फुटबॉल बनाए जाते हैं. हर परिवार 5-6 गेंदों की सिलाई करता है. गांव के प्रधान का कहना है कि फुटबॉल बनाने का सालाना 3 करोड़ रुपये का कारोबार है. गांव के हरि प्रकाश बताते हैं कि मेरठ के सिसोला बुजुर्ग गांव के 3,000 से अधिक परिवार आजीविका के लिए फुटबॉल बनाते हैं. यह काम गांव में 40 साल से भी अधिक समय से से हो रहा है.

Advertisement