नोटबंदी के 6 साल! जानिए कितना बदल गया नकदी चलन का तरीका, नकली नोटों पर कितनी लगी पाबंदी और कितना कैश है सिस्टम में?

नई दिल्ली . कौन-सा भारतीय 8 नवंबर, 2016 का दिन भूल सकता है, जब मोदी सरकार ने अपने सबसे सख्तम फैसलों में से एक नोटबंदी को लागू किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात 8 बजे 500 और 1,000 रुपये के नोट को चलन से अचानक बाहर करके पूरे देश को चौंका दिया था. इसका मकसद ब्लैेक मनी और नकली नोटों पर लगाम कसना था. आज इस फैसले को लागू हुए छह साल बीत गए हैं और पीछे मुड़कर देखने पर पता चलता है कि इस फैसले ने कितना प्रभावित किया और क्याे कुछ बदल दिया.

जिस समय सिस्टरम से 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट को बाहर किया गया था, उस समय इनकी कुल भागीदारी 86 फीसदी थी. इससे पता चलता है कि सिस्टयम में मौजूद इतनी भारी मात्रा में किसी नोट को बंद करने से कितना बड़ा असर पड़ सकता है. नोटबंदी के इतने साल बाद अर्थशास्त्रियों को लगता है कि यह फैसला काफी सख्ते था और इससे महज 5 फीसदी ब्लैयक मनी पर ही शिकंजा कसा जा सका है. बाकी का कालाधान सोने-चांदी और रियल एस्टेजट के रूप में भरा पड़ा है.

तिहरे वार की थी रणनीति

प्रधानमंत्री मोदी का मकसद इस फैसले से तीन तरफा सुधार करने का था. सबसे पहला और बड़ा था कालेधन पर लगाम कसना, दूसरा नकली करेंसी को चलन से बाहर करना और तीसरा कैशलेस इकोनॉमी को मजबूत करना. यहां ब्लैरक मनी से मतलब उन पैसों से था, जिनकी गिनती बैंकिंग सिस्टयम में नहीं थी और उस पर किसी तरह का टैक्स  भी नहीं दिया जाता था. अब जबकि फैसला लागू हुए तीन साल बीत गए तो हम पड़ताल के जरिये जानेंगे कि इन तीनों में से किस पर ज्याीदा असर पड़ा है.

ब्लैपक मनी पर कितनी लगी लगाम

नोटबंदी के फैसको जिस वजह से लागू किया गया उसमें सबसे प्रमुख यही था कि कालेधन पर लगाम कसी जा सकेगी. रिजर्व बैंक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि सिस्टीम से बाहर हुई 99 फीसदी नकदी वापस लौट चुकी है. नोटबंदी से कुल 15.41 लाख करोड़ की नकदी चलन से बाहर हुई थी और अब तक 15.31 लाख करोड़ वापस लौट चुकी है. हालांकि, यह पता करना काफी मुश्किल है कि कितना कालाधन खत्म  हुआ, लेकिन फरवरी 2019 में वित्तिमंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि छापेमारी और नोटबंदी से 1.3 लाख करोड़ की ब्लै कमनी को खत्मर किया गया है. हालांकि, सरकार को उम्मीयद थी कि करीब 3 से 4 लाख करोड़ के कालेधन पर लगाम कसी जा सकेगी.

क्या नकली नोटों पर कसी लगाम

नोटबंदी का दूसरा बड़ा मकसद नकली नोटों पर लगाम कसना था. हकीकत रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट से पता चलती है. 27 मई को जारी इस रिपोर्ट में आरबीआई ने बताया कि नकली नोटों की संख्या  10.7 फीसदी बढ़ गई है. इसमें 500 रुपये के नकली नोट में 101.93 फीसदी का उछाल आया है तो 2,000 के नकली नोट की संख्यान 54 फीसदी बढ़ने की बात कही. इतना ही नहीं 10 रुपये के नकली नोट की संख्याइ 16.45 फीसदी और 20 रुपये के नकली नोट की संख्याे 16.48 फीसदी बढ़ी है.

इसके अलावा 200 रुपये के नोट का भी नकली वर्जन 11.7 फीसदी बढ़ गया है. 50 रुपये के नकली नोट सिस्टजम में 28.65 फीसदी बढ़े तो 100 रुपये के नकली नोट 16.71 फीसदी बढ़ गए हैं. कुल नकली नोट में 6.9 फीसदी आरबीआई में पकड़े गए जबकि 93.1 फीसदी की पहचान अन्य. बैंकों में हुई. 2016 में नोटबंदी के समय कुल 6.32 लाख नकली नोट पकड़े गए थे, जबकि इसके बाद अगले चार सालों में 18.87 लाख नकली नोट पकड़े गए.

कैश फिर बना किंग

तीसरा सबसे बड़ा मकसद देश की अर्थव्यकवस्था को कैशलेस की तरफ ले जाना था. हालांकि, नोटबंदी के 6 बाद हम देखते हैं तो कैश फिर से लेनदेन का बादशाह नजर आ रहा है. आरबीआई के मुताबिक, लोगों का नकदी में लेनदेन 21 अक्टू बर, 2022 तक बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गया, जबकि 4 नवंबर, 2016 को यह संख्या3 17.7 लाख करोड़ थी. हालांकि, इस दौरान डिजिटल भुगतान में भी बंपर इजाफा हुआ है. बीते महीने अक्टूहबर में यूपीआई के जरिये कुल भुगतान 12.11 लाख करोड़ रुपये रहा. नोटबंदी के इस समय इसके जरिये लेनदेन न के बराबर था.

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