जाने कैसे रखे जाते हैं एयरपोर्ट के कोड, कौन करता है दुनियाभर में ये काम?

उत्‍तर प्रदेश के नोएडा के जेवर में शुरू होने वाले नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट यानी एनआईए को विशिष्‍ट इंटरनेशनल कोड मिल गया है. नोएडा एयरपोर्ट को तीन अक्षर का विशेष कोड डीएक्‍सएनआवंटित किया गया है. ये एयरपोर्ट नोएडा के बॉटेनिकल गार्डन से 65 किमी दूर है. इसका पहला फेज 2024 के आखिर तक शुरू हो जाएगा. नोएडा इंटरनेशनल में हर साल 1.2 करोड़ एयर पैसेंजर्स की क्षमता वाला एक टर्मिनल और 3.9 किमी लंबा रनवे बनाया जा रहा है. अब सवाल ये उठता है कि दुनियाभर के एयरपोर्ट्स को ये विशिष्‍ट कोड जारी कैसे किया जाता है? ये काम करता कौन है?

जेवर में नोएडा अंतरराष्‍ट्रीय हवाई अड्डे को ही नहीं दुनियाभर के सभी एयरपोर्ट्स को इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन यानी आएटा विशिष्‍ट कोड्स जारी करता है. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एनआईए के सीईओ क्रिस्टोफ श्नेलमैन ने बताया कि यह कोड दिल्ली-नोएडा और जेवर एयरपोर्ट के जरिये दुनिया से इसकी कनेक्टिविटी की स्पष्ट समझ देता है. विशिष्‍ट कोड डीएक्‍सएन में डीदिल्ली को दर्शाता है, जो राष्ट्रीय राजधानी है. वहीं, ‘एनका मतलब नोएडा है, जो पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश क्षेत्र में एयरपोर्ट की स्थिति को दर्शाता है. वहीं, ‘एक्सभारत और दुनिया के दूसरे देशों में कनेक्टिविटी का प्रतीक है.

एयरपोर्ट यूनिक कोड क्या होता है?

एयरपोर्ट कोड हर हवाईअड्डे को मिलने वाला विशिष्ट पहचानकर्ता कोड है. हर हवाई अड्डे के दो विशिष्‍ट कोड होते हैं. पहला कोड इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन तय करता है. वहीं, दूसरा विशिष्‍ट कोड संयुक्त राष्ट्र की एक शाखा इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइजेशन यानी आईसीएओ तय करता है. दोनों कोड्स का इस्‍तेमाल हवाईअड्डों की सटीक पहचान करने के लिए किया जाता है. हालांकि, दोनों के मायने अलग-अलग होते हैं.

क्‍या है दोनों कोड्स का इस्‍तेमाल?

तीन अक्षर के आएटा कोड का इस्‍तेमाल टिकट, बोर्डिंग पास, साइनेज जैसे यात्रियों के परिचालन उद्देश्‍यों के लिए किया जाता है. वहीं, आईसीएओ की ओर से जारी होन वाले चार अक्षर के कोड का इस्‍तेमाल पायलट, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर, पॉलिसी मेकर्स जैसे पेशेवर करते हैं. उदाहरण के लिए, दिल्ली में इंदिरा गांधी इंटरनेशन एयरपोर्ट के लिए आएटा कोड डीईएल है, जबकि आईसीएओ कोड वीआईडीपी है.

कब शुरू हुआ कोड का सिस्‍टम?

वाणिज्यिक विमानन के शुरुआती दौर में पहली बार 1930 के दशक में एयरपोर्ट कोडिंग शुरू की गई थी. उस समय एयरलाइंस और पायलट आमतौर पर गंतव्यों की पहचान के लिए अपने खुद के दो अक्षर के कोड चुनते थे. हालांकि, 1940 के दशक तक हवाई अड्डों की संख्या तेजी से बढ़ी और तीन अक्षर वाले विशिष्‍ट कोड की एक प्रणाली तैयार की गई. आखिर में 1960 के दशक में आएटा की ओर से इनका मानकीकरण किया गया. एनआईए की मुख्‍य परिचालन अधिकारी किरण जैन ने बताया कि एयरपोर्ट ऑपरेटर के तौर पर कोड मील के पत्थर की तरह होता है. ये हवाईअड्डे की पहचान होता है. एकबार मिला हुआ कोड हमेशा के लिए होता है. इसे बदला नहीं जा सकता है.

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